उम्मीद ...................

by apriya on April 10, 2011, 01:26:03 AM
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apriya
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सोचा था फिर कभी लौट कर उसके दरवाजे पर ना जाऊँगा पर न जाने क्यों अनचाहे ही मई अपने इस फैसले पर दोबारा सोचने को मजबूर हो गया था| ना जाने क्यों मई दोबारा उसी दर पर जाने को बेकरार हो रहा था|जैसे जैसे रात गहराती जा रही था मेरा हर पल मुझे बोझ सा प्रतीत हो रहा था|
रात गहरायी तो पता नहीं नहीं कब मै सो गया पर जब आँख खुली तो धुप खिल चुकी थी|अब इंतज़ार मुस्किल हो रहा था, मैंने सोचा की राश्ते में उससे मिलता जाऊँगा| रात की सोच गहरी थी सो सायद अब तक उसके निशा मेरी स्मृति पटल पर अंकित थे|अब भी मन बार बार रात के ख्यालो में खो जाता था|इसी तरह रात भर मै अपने एक अदद खोये दोस्त से मिलने पर होने वाली एहसास को नफे नुकसान की तराजू में तौल रहा था|अपनी सोच अपनी उसूल अपनी गलतियों को झुठलाता हुआ बार बार मै अपने व्यवहार की तुलना देव के घमंड और उग्रता से करता रहा और सायद मुझे नींद तब ही आई होगी जब मुझे अपनी थोथली जीत का एहसास हुआ होगा| इन्ही सब ख्यालो के बीच न जाने कब रागिनी मेरे कमरे में आई और मेरे बैग्स पैक करनी लगी और एक आवाज देकर कहा की आनंद कैंटीन में जाकर कुछ खा लो और तैयार हो जाओ २ घंटे बाद ट्रेन है|
उसकी इस चिरपरिचित आवाज से न जाने मन में कैसी बिजली कौंध गयी और मै साड़ी बातो को भूल कर बस उसे देखने लगा| उस एक पल में लगा की मानो मुझे अरसे से जिसकी ख्वाहिश थी वो आज बरबस ही मुझे मेरे दोस्त की शक्ल में मिल गयी| मै चुप चाप जाकर उसके करीब खड़ा हो गया और उसे निहारने लगा| वो चुप चाप खामोशी से मेरे कपड़ो को सहेज कर रख रही थी|सहसा उसे मेरी मौजूदगी का एहसास हुआ और वो जैसे ही मुड़ी मैंने उसे वो तीन लफ्ज़ कह दिए जो शायद ही उसने मुझसे सुनने की उम्मीद की होगी|
वो इस बात के बाद चुप थी और बस इतना कहा की उसे वक़्त चाहिए और मेरे पास यही एक चीज प्रचुर थी|मैंने कैंटीन जाकर खाना खाया और अपने पुराने बकाया खाते को बंद करवाया| ये कैंटीन ही वो ठिकाना था जहा बैठ कर अक्सर मई और रागिनी गाहे बगाहे अतीत की यादो में खोते थे और वो चंदे लम्हे हम दोनों एक दुसरे के बिलकुल पास होते थे|उन पालो में हमारा अतीत निर्वस्त्र एक दुसरे के सामने पड़ा होता था, हम उस पल लज्जा और शर्म की दीवारों से ऊपर उठ कर देखते थे और एक दुसरे को समझाते थे की परिस्थितिया उलट भी हो सकती थी|
इस कैंटीन ने ही मुझपे इतनी इनायत बरती थी आज भी मई देव का बारे में कुछ जानता था|अब उसका चरित्र वर्णन के लिए मेरे शब्दकोष में शब्दों की कमी सी हो गयी थी पर मेरे लिए यह सब काल्पनिक था|
रागिनी के शब्दों में वो अब एक आकर्षक व्यक्तित्व मालिक घुन्घ्रैले बाल गठीला बदन भूरी आखे उभरा हुआ कपल मानो उसका हर एक अंग उत्तम था| वह अब अपने नए दोस्तों के साथ अपनी नयी दुनिया में खुश था|भूले बिसरे उसके दोस्त उसकी चापलूसी करने की खातिर मेरी बुरे करते सुने जा सकते थे और ये बातिएँ असलियत में देव के दिल को बड़ा सुकून पहुचाती थी| ये सब रागिनी की मेहरबानी थी जो देव की पड़ोसन होने के साथ ही मेरी दोस्त और सहपाठिनी भी थी|मेरी अदद दोस्त होने के कारन हम दोनों के बिच कुछ छुपा नहीं था|
आख़िरकार हम सारे काम निपटा कर स्टेशन की ओर चल दिए|रास्ते भर मै इस उधेड़बुन में फंसा रहा की रागिनी से कल रात की बात करू या नहीं?अंततोगत्वा ट्रेन में बैठने के बाद मैंने उससे साड़ी बाते की और निष्कर्स निकला की मुझे बीती बाते भूल कर उससे मिलना चाहिए और सारी बाते साफ़ करनी चाहिए|रागिनी के ख्याल से हम दोनों को मिलकर सारी ग़लतफहमी दूर करनी चाहिए|
सफ़र ख़त्म हुआ और मै अपना सामान अमानती सामान घर में रखकर देव के घर की ओर चल पड़ा| रास्ते भर वही पुराने विचारो की उहापोह ,शहर की पी पी पो पो के बिच भी मेरा मन बरबस ही चार साल पुराणी उस बात की ओर चला ही गया जो शायद एकलौती वजह थी जिसने मेरी और देव की बचपन की दोस्ती में दरार डाल दी थी|इस वाकये में सबसे बड़ा हाथ उस अनजानी लड़की का था जो उस दिन आखिरी बार हमे नजर आई थी| उस एक हादसे ने हमारे दोस्ती में ऐसी दरार दाल दी की बरसो की दोस्ती इतनी कमजोर हो गयी थी एक हर डोर अब बस आंधी की एक आहट से ही तुने को आई थी और रही सही कसर हमारे मोहल्ले वालो ने पूरी कर दी थी| हम एक दुसरे से इतनी दूर चले गए थे की अब एक दुसरे की नींदे खराब करना,जूठी शिकायत से दान पडवाना और फिर पहल करके बचाना ,एक दुसरे की परीक्षा में मदद करना सब बस यादों में रह गया था|अगर कुछ अब भी मौजूद था हम दोनों के बीच और वो था उस रात का असर|
बात पुरानी ही सही पर स्मृतिपटल पर अब भी उस रात और रेलवे स्टेशन की वो धुंधली सी तस्वीर अंकित थी|सारा वाक्य लफ्ज़ बा लफ्ज़ याद है मुझे|मै और देव मेरे भैया को पटना जाने वाली ट्रेन पे बिठाकर वापस लौट रहे थे| दिसम्बर की सर्द रात में जब कोहरे के धुंधलके से हाथ को हाथ नहीं दिख रहे तब हम दोनों बस अपनी बातो में बात पुरानी ही सही पर स्मृतिपटल पर अब भी उस रात और रेलवे स्टेशन की वो धुंधली सी तस्वीर अंकित थी|सारा वाक्य लफ्ज़ बा लफ्ज़ याद है मुझे|मै और देव मेरे भैया को पटना जाने वाली ट्रेन पे बिठाकर वापस लौट रहे थे| दिसम्बर की सर्द रात में जब कोहरे के धुंधलके से हाथ को हाथ नहीं दिख रहे तब हम दोनों बस उसी के चर्चे में गुम घर की और मस्त चाल में चले जा रहे थे|तभी अचानक एक लड़की अपनी स्कूटी तेजी से भगाती हुई गिरी और कुछ बदमाश हवस के भूखे उसकी आबरू लुटने की मंशा से उसके पीछे भागे आ रहे थे|सह्षा देव रुख बदलता हुआ उस लड़की की और उसकी मदद की खातिर बढ़ा और मुझसे चंद कदमो के फासले पर रुक कर जोर से चिल्लाया और कहा आनंद ये तो वही है|और फिर हम दोनों तेजी से उसकी और बढे और तभी कुछ आवारा लोग कुत्तो की भाति उसपर झपटे और मानो वो उसके अंग अंग से खेलकर अपनी हवस की लालसा पूरी कर लेना चाहते थे| उन्हें देखकर मेरी मानो फटी की फटी रह गयी और मैंने कहा देव निकल ले पर देव था की उसे उस परिस्थति में नहीं छोड़ना चाहता था| आखिर क्यूकर कोई अपनी चाहत को गुमनाम हवस के पुजारियों के बिच छोड़ सकता था| सो देव उनके आगे अड़ गया और उनसे अकेला ही भिड़ना चाहता था और मुझे ना चाहते हुए भी उसके साथ उन सड़कछाप लोगो की मार खानी पड़ी| जब होश आया तो मई और देव सदर अस्पताल के एक कमरे में पड़े थे और हमारे घरवाले सामने बैठे खुसर फुसर में लगे थे की तभी मेरे पिताजी ने मुझे सचेत देखा और दौड़ कर मेरे पास आये और पूछा की कैसे हो|मैंने मूक नजरो से देव की ओर देखा और पाया की वो अब भी बेहोश है|
फिर मैंने अपने लफ्जों में सारी कहानी बताई और फिर अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद हम दोनों घर गए और देव भी मेरे साथ मेरे ही घर में था| फिर हमें एक दिन पुलिस थाने जाना पड़ा और वह जाकर हमने सारी बात बताई पर अनजान कारणों से हमे २ दिन कि सजा मिली और फिर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया|पर फिर इसके बाद जो हुआ शायद वो कुछ ज्यादा ही दुखदायी था| उसके चंद दिनों बाद देव और मेरे बीच दुरिया कुछ यु बढ़ी मानो सब कुछ ख़त्म होने को था|उसे शायद ऐसा लगता था कि मई कही न कही इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार था मई उस लड़की को जानता था पर मैंने ये बाते देव से छुपी और ना जाने कितने ही ऐसे अफवाह थे जो कुछ लोगो ने देव कि कानो में दाल दिए थे|मै इन सब से अनजान अब भी देव को अपने इतना ही करीब मानता था कि हम साथ साथ स्कूल जाने के लिए घर से निकले पर राश्ते में हुए बातो ने सब कुछ साफ़ कर दिया|पहले हम जितने करीब थे अब उतने ही दूर जा चुके थे|अकेले हम दोनों बिलकुल बेबस थे जैसे तीर और कमान| अलग अलग हम औरो पर वार तो क्या अपना बचाव भी नहीं कर सकते थे| मुझे ऐसा लगता था कि मैंने उस रात देव को अपने साथ लेजाकर अच्छा नहीं किया था और ना जाने कितनी ही ऐसी बातिएँ मेरे भी जेहन में अब आने लगी थी जो हर दुसरे पल देव को मेरी नजरो में गुनाहगार साबित करने लगे थे|और इन सब के बीच कैसे हम दोनों के बीच मोहल्ले के ही लोगो ने दुरिया बढ़ा दी थी|अब हम दोनों को एक दुसरे कि हर बात बुरी लगने लगी थी और न जाने कितनी ही बार हम दोनों अक्सर एक दुसरे को लोगो के बीच बुरा बताने और निचा दिखाने में लगे रहते थे|अब आलम तो ये थे कि देव मुझे कलंकित इंसान लगने लगा था|
पर इस एक वाकये को छोड़ दे तो देव एक बेहद सलीकेदार इन्सान था|वो बिलकुल पवित्र और निश्छल था|देव अक्सर ही लोगो कि मदद के लिए मुझे प्रेरित करता था|ये तो मात्र एक संयोग था कि वो देव कि चाहत थी|सहसा मुझे अपने विचारो पे घिन्न आई और मुझे अपने विजयी होने के एहसास से नफरत होने लगी|
अगले ही पल रागिनी कि आवाज ने मेरी तन्द्रा तोड़ी तो एहसास हुआ कि मै रागिनी के घर पहुँच चूका था|फिर थोड़ी देर उसके घर पे बैठ कर मै और रागिनी देव के घर कि ओर चले और दरवाजे पे पहुच कर मैंने कुण्डी खटखटायी तो अन्दर से चिरपरिचित आवाज आई जो निश्चय ही काकी माँ कि थी और उन्होंने अपनी ही भाषा में कहा-के आचे बहिरे?
मैंने उन्ही के लहजे में कहा-काकी माँ देव बड़ी ते आछे न कि??
अन्दर से काकी माँ ने कहा- न देव घोरे नेई पोरे एसो|
फिर मैंने कहा- काकी माँ आमी आनंदों भितोरे इसे बोस्ते पारी??
सहसा मनो काकी माँ के अन्दर एक अजीब सी उर्जा का प्रवाह हो गया और वो दौड़ी दौड़ी आई और गले से लगाया और मेरे सर पर हाथ फेरने लगी और कहा कि उन्हें कभी उम्मीद ही नहीं थी कि मै कभी उनके घर आऊंगा| मैंने मजकिये लहजे में रागिनी कि ओर देख कर कहा अब तो आना जाना लगा रहेगा|वहा बैठ कर मै और रागिनी देव का इंतज़ार करते रहे हमने खाना खाया पर देव का कोई नाम-ओ-निशा नहीं था| शायद वो देर से घर आने वाला था और काकी माँ को इसकी जानकारी नहीं थी|मेरी ट्रेन का वक़्त हो चला था सो मैंने देव कि खातिर एक हस्त लिखित नोट छोड़ना उचित समझा|सारे राश्ते मै बस देव और अपने रिश्ते कि यादो में खोया रह था और फिर अतीत धुंधलके से खो गया और वर्तमान ने उसकी जगह ले ली तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मैंने कुछ खो दिया है और वो अनमोल मोती मेरा दोस्त देव ही है|इन्ही सब गिलो और शिकवो के बीच मैंने काकी माँ से विदा ली और रागिनी को एक प्यार बहरी नजर से देखा और उसे शायद ये समझ में आ गया था कि मै उसपे अपना प्यार जाता रह था|अब मेरा सफ़र मेरे गाँव के लिए सुरु हो चूका था| रास्ते में मै बस यही सोचता रहा कि सायद देव के लिए मै और मेरे लिए देव बेगाने हो गए है|पर एक आस अब भी थी कि शायद कभी हम दोनों पहले कि ही तरह दोस्त होंगे|
इस वाकये ने कुछ ऐसा हश्र किया था मेरा कि पूरी छुट्टिय इसी उधेड़बुन में गुजरी कि मै गलत था या नहीं| छुट्टी ख़त्म हो चुकी थी और अब वक़्त था वापस कॉलेज में जाने का | सो मै रास्ते में रागिनी को लेने गया तो देखा देव आया है|मेरी बांछे खिल गयी कि देव वापस आ गया है और वो मुझसे मिलने आया है|पर सायद मै गलत था वो तो रागिनी को स्टेशन छोड़ने आया था|बस थोड़ी ही बाते हुई हम दोनों के बीच| उसने उन चंद लम्हों में मुझे ये सोचने पर विवश कर दिया था कि शायद मै गलत था और मुझे अपनी भूल सुधारने का कोई हक नहीं है|एकलौती बात जो मैंने महसूस कि वो ये थी कि शायद वो भी रागिनी से प्यार करता था|मेरी उस अल्पकालिक खुसी को मैंने व्यक्त किया पर शायद देव को कही जाने कि जल्दी थी|उसने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया या फिर शायद नजरअंदाज करके निकल पड़ा|ट्रेन खुल चुकी थी और वो मेरी नजरो से ओझल हो चूका था|
मैंने नजरो ही नजरो में रागिनी से पूछना चाह किक्या वो भी देव को....................
फिर रागिनी ने खुद ही छुप्पी तोड़ते हुए कहा कि उसका जवाब हां है और मै फिर खुश हो चूका था|मै और रागिनी अब बहुत करीब है एक दुसरे के और बहुत खुश है पर मलाल है तो बस इस बात का कि देव हम दोनों के साथ नहीं है|
एक उम्मीद अब भी है कि कभी न कभी हम दोनों साथ होंगे और सब ठीक होगा......|
मैंने और रागिनी ने ये तय किया है कि हम दोनों अपनी इस प्रेम कहानी सबसे पहले देव को बताएँगे| कॉलेज ख़त्म होने में बस कुछ और दिन बचे है|
और शायद इतने ही दिन मेरे और देव के बीच ये दुरिया है|

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apriya
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«Reply #1 on: April 10, 2011, 01:28:31 AM »
meri galtiyo ko kshama kare mai abhi bachchha hu
bas khwahish hai falak pe chhane ki par kalam ka abhi kachchha hu


bahut saari khaamiya hongi isme mai chahta hu aapllog apne comments de aur meri galtiyo ko ujagar kare taaki mai unhe sudhaar saku. aur is baat ka khyal rakhu ki ye galtiya na dohrayu apni agli kahani me
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