ताजमहल ...

by usha rajesh on February 19, 2012, 04:39:53 PM
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khamosh_aawaaz
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«Reply #15 on: February 22, 2012, 08:50:49 AM »
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अपने पति को बैठे देखकर यूँ उदास
कारण जानने का मैंने किया प्रयास
पूछा-
लगता है दुश्मनो की तबियत कुछ नासाज़ है
प्रिय, क्यों ये चेहरा मुर्झाया है, क्या बात है?
तुम्हारी उदासी देख कर वही पुरानी घटना याद आ रही है
क्यों वही बेबसी फिर तुम्हारी आँखों में आज छा रही है ?

तुम बैठे थे कुछ उदास, कुछ बेचैन
शून्य में जैसे खोये - खोये थे नैन
बहुत कुरेदने पर तुमने लब खोले थे
तोल–तोल कर फिर ये बोल बोले थे –
मैं भी किसी को दिल मैं सजाना चाहता हूँ
मुहब्बत का एक ताजमहल बनाना चाहता हूँ
मगर दिल की बात दिल ही में रही जाती है
मुझे मेरी मुमताज़ कहीं नज़र नहीं आती है

तब तुम्हारे दिल का दर्द मेरे दिल ने सहा था
मैंने कुछ शरमाते, कुछ सकुचाते हुए कहा था
ज़रा गौर से देखो, दूर - दूर जहाँ तक नज़र जाती है
मुमताज़ तो पास ही है, तुम्हें क्यों नज़र नहीं आती है? 
करम खुदा का, मेरी ये सूरत तुम्हें भा गयी थी
तुम्हारे चेहरे की रौनक फिर वापस आ गयी थी 

देखती हूँ साल दर साल तुम्हारी रंगत कम हुई जाती है
और, तुम्हारी ये हालत देख मेरी चश्म नम हुई जाती है
कौन सी बात, कौन सा गम है, जो तुम्हें खाए जाता है?
अच्छे से अच्छा चुटकुला भी क्यों तुम्हें हँसा नहीं पाता है.
तुम मेरे लिए एक ताज़महल बनाना चाहते थे
मुमताज़ बनाकर मुझे दिल में सजाना चाहते थे

तब प्राणनाथ ने जैसे नींद से जागते हुए, अपने लब खोले
बड़ी बेबसी से मेरी ओर देखा, फिर दर्द भरी आवाज़ में बोले
प्रिये, यही गम है जो बरसों से अंदर ही अंदर मुझे खाए जाता है
यही कारण है के मेरा चेहरा, दिन – ब - दिन मुरझाये जाता है.
मैं पिछले बीस वर्षों से ताजमहल बनाने को तरस रहा हूँ
यूँ लगता है जैसे सदियों से बेमौसम सावन-सा बरस रहा हूँ

मैं आज भी शाहजहाँ बन, तुम्हें मेरे दिल में सजाना चाहता हूँ
आज भी तुम्हारी याद में खूबसूरत ताजमहल बनाना चाहता हूँ.
मगर,
मगर तुम न जाने किस बात का बदला ले रही हो,
मेरी बरसों की मुहब्बत का मुझे ये सिला दे रही हो   
समझ नहीं आता, किस चीज़ ने तुम्हें इस कदर बाँध रखा है ,
जीते जी डरा रही हो, ऊपर जाने का नाम ही नहीं ले रही हो.
                                               tongue3 tongue3 tongue3

                                   ---------उषा राजेश शर्मा



KYA KHOOB TANZ KIYA HAI AAJ KAL KE SHAUHARON PE BHAI WAH U.R JI KHOOB FARMAYA


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usha rajesh
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«Reply #16 on: February 22, 2012, 03:52:47 PM »
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Nysha ji,
apko padhne mein maja aaya, meri koshish safal ho gayi.
Apka bahut bahut shukriya.

Na! na! Saare pati aise nahi hote. Infact mere bhi nahi hain isiliye to unke upar ye kavita likhne ka dussaahas kar payi hun. icon_flower
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usha rajesh
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«Reply #17 on: February 25, 2012, 06:00:54 AM »
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KYA KHOOB TANZ KIYA HAI AAJ KAL KE SHAUHARON PE BHAI WAH U.R JI KHOOB FARMAYA


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Khamosh ji, kya baat hai! Khamosh rah kar bhi bahut kuchh kah jaatein hai aap. Hosla afjai ka bahut bahut shukriya.
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«Reply #18 on: May 20, 2012, 10:33:14 AM »
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अपने पति को बैठे देखकर यूँ उदास
कारण जानने का मैंने किया प्रयास
पूछा-
लगता है दुश्मनो की तबियत कुछ नासाज़ है
प्रिय, क्यों ये चेहरा मुर्झाया है, क्या बात है?
तुम्हारी उदासी देख कर वही पुरानी घटना याद आ रही है
क्यों वही बेबसी फिर तुम्हारी आँखों में आज छा रही है ?

तुम बैठे थे कुछ उदास, कुछ बेचैन
शून्य में जैसे खोये - खोये थे नैन
बहुत कुरेदने पर तुमने लब खोले थे
तोल–तोल कर फिर ये बोल बोले थे –
मैं भी किसी को दिल मैं सजाना चाहता हूँ
मुहब्बत का एक ताजमहल बनाना चाहता हूँ
मगर दिल की बात दिल ही में रही जाती है
मुझे मेरी मुमताज़ कहीं नज़र नहीं आती है

तब तुम्हारे दिल का दर्द मेरे दिल ने सहा था
मैंने कुछ शरमाते, कुछ सकुचाते हुए कहा था
ज़रा गौर से देखो, दूर - दूर जहाँ तक नज़र जाती है
मुमताज़ तो पास ही है, तुम्हें क्यों नज़र नहीं आती है? 
करम खुदा का, मेरी ये सूरत तुम्हें भा गयी थी
तुम्हारे चेहरे की रौनक फिर वापस आ गयी थी 

देखती हूँ साल दर साल तुम्हारी रंगत कम हुई जाती है
और, तुम्हारी ये हालत देख मेरी चश्म नम हुई जाती है
कौन सी बात, कौन सा गम है, जो तुम्हें खाए जाता है?
अच्छे से अच्छा चुटकुला भी क्यों तुम्हें हँसा नहीं पाता है.
तुम मेरे लिए एक ताज़महल बनाना चाहते थे
मुमताज़ बनाकर मुझे दिल में सजाना चाहते थे

तब प्राणनाथ ने जैसे नींद से जागते हुए, अपने लब खोले
बड़ी बेबसी से मेरी ओर देखा, फिर दर्द भरी आवाज़ में बोले
प्रिये, यही गम है जो बरसों से अंदर ही अंदर मुझे खाए जाता है
यही कारण है के मेरा चेहरा, दिन – ब - दिन मुरझाये जाता है.
मैं पिछले बीस वर्षों से ताजमहल बनाने को तरस रहा हूँ
यूँ लगता है जैसे सदियों से बेमौसम सावन-सा बरस रहा हूँ

मैं आज भी शाहजहाँ बन, तुम्हें मेरे दिल में सजाना चाहता हूँ
आज भी तुम्हारी याद में खूबसूरत ताजमहल बनाना चाहता हूँ.
मगर,
मगर तुम न जाने किस बात का बदला ले रही हो,
मेरी बरसों की मुहब्बत का मुझे ये सिला दे रही हो   
समझ नहीं आता, किस चीज़ ने तुम्हें इस कदर बाँध रखा है ,
जीते जी डरा रही हो, ऊपर जाने का नाम ही नहीं ले रही हो.
                                               tongue3 tongue3 tongue3

                                   ---------उषा राजेश शर्मा


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