| anand mohan 
								Guest
 | किसी ने पूछा, मुझे क्या गम है ?मैं सोंच में पड़ गया ,
 लगा – कुछ नहीं,
 कुछ भी तो नहीं ।
 मेरे अपने मेरे पास हैं,
 सब खुश हैं, खुशहाल हैं ।
 मेरे सपने ......हाँ...
 शायद उनके टूटने का गम है ....शायद ।
 कभी – कभी ये एहसास होता है
 कि शायद मेरा सपना ही झूठा है ,
 छलावा है, दुनिया का धोखा है ,
 मैं उसके पीछे हूँ, और वो .....
 वो कहीं नहीं है ।
 शायद इसी वजह से , सबने मुझे
 नासमझ समझ रखा है ।
 क्योंकि मैंने बिना फायदे-नुकसान कि परवाह किए
 उन तिनको को जोड़ा ,
 जिनसे मेरे सपने बुनने को थे।
 मगर आंधियों का इल्म ना था,
 तिनके बह गए,
 मैं ठगा सा रह गया ।
 मैं अपनी दुनिया में खोया हूँ,
 जो शायद नकली हैं ।
 मेरी जो चाहत है,
 मेरा हो नहीं पाता हैं ,
 मैं जिसे पाता हूँ,
 मेरा रह नहीं पाता है ।
 मैं अपने अपनों को भी
 अपना कह नहीं पाता ।
 मैं सोचता हूँ –
 मेरी सोच कितनी छोटी है,
 खोटी है शायद ।
 तभी तो इसमें कोई समा नहीं पाता ।
 मैं जिसकी सोचता हूँ,
 वो दिल में मेरे आ नहीं पाता ।
 मैं रुकता हूँ – थक कर ही सही ,
 दो पल को ढूँढता हूँ,
 थोड़ी छांव, थोड़ी सांस ।
 पाता हूँ –
 एक अंजान सी तपिश ,
 जो शायद तन नहीं जलाती ,
 मगर हृदय पर फफोले उठाती है,
 मैं कुछ कर नहीं पाता,
 कुछ कह नहीं पाता,
 मगर यह पीड़ा ऐसी है,
 कि मैं बस सह नहीं पाता ।
 छटपटाता हूँ,
 मगर कोई कंधा कहाँ पाता हूँ ।
 खो गया हूँ ,
 मैं इस रँगीली दुनिया में ।
 मैं इसलिए तो आया हूँ
 इन शब्दों के खिलौनो से खेलने,
 इन ख्वाबों कि दुनिया में –
 जहां कोई बंदिश नहीं है,
 कोई नफा नुकसान नहीं ।
 ना चाहत , ना अदावत ,
 रिश्तों की झूठी दुकान नहीं ।
 मैं आया हूँ ,
 भावना की नदी में गोते लगाने,
 भीनी सुरीली लय की परख करने,
 अपने दर्द को सुनाने,
 अपने ग़म को भुलाने,
 मैं आया हूँ इस दुनिया में,
 अपनी ज़िंदगी को पाने ।
 मेरी ये दुनिया शायद तुम्हें पसंद ना हो,
 मगर मुझे यहाँ सांसें मिलती हैं ।
 मैं जो चाहता हूँ,
 यहाँ कह पाता हूँ ।
 मुझे यहाँ शिकवे-गिले का डर नहीं,
 यह दुनिया मेरी अपनी है ,
 मेरी हर बात ये सहेज कर रखती है,
 करीने से ।
 मैं जब चाहूँ, दोहरा सकता हूँ,
 अपनी खुशी,
 जब चाहूँ बाँट सकता हूँ,
 अपना दर्द ।
 यहाँ मेरा जो साथी है,
 वो हर वक़्त
 मुझे सुनने को तैयार है,
 झेलने को भी ।
 मैं जानता हूँ,
 वह मेरी बात सुनेगा,
 मैं मानता हूँ,
 वह मेरी गलतियों की अनदेखी करेगा ;
 मुझे पता है –
 वह मेरा साथ नहीं छोड़ेगा।
 मुझे अफसोस है,
 मैं उससे बिछड़ गया था,
 उस रंगीली दुनिया में,
 मुझे भी रंगने का शौक चढ़ा था ।
 अब मैंने जाना,
 वह जो दिखता है ,
 वह कुछ और था।
 वहाँ मेरी जगह अपनी नहीं है,
 मैं वहाँ बस मेहमान था ।
 आज मैं अपनी दुनिया में हूँ,
 जहां मेरा आराम है, शुकून है ,
 जहां मेरा जुनून है ।
 मेरी लेखनी मेरे साथ है ।
 मुझे कोई और हाथ दे ना दे,
 मैं जानता हूँ –
 मेरा दर्द, मेरी सोंच , मेरी भावनाएँ
 मेरे बदन के राख़ बनने तक
 मेरे साथ रहेंगी ।
 मुझे इन्हें हिफाज़त से रखना है,
 अपनी दुनिया में सँजोकर ।
 ताकि इन पर
 उस रंगीली दुनिया का रंग ना चढ़े ...
 यही मेरा सच है....
 येही मेरी सच्चाई ॥
 
 -   आनंद मोहन
 
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