फ़राज़ कलाम और उतार हयात

by canvaskhi on December 17, 2012, 09:02:01 AM
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canvaskhi
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 फ़राज़ कलाम और उतार हयात
फ़राज़ कलाम और उतार हयात
नूपीज़ अनवर सिद्दीकी

''आप यह बटुए ग़रीब बक्से भूल आए थे सोचा आप परेशान होंगे सो उसे यानी आपकी अमानत लौटा चला आया''तीस ब्ी वर्षीय मदसुस से नौ जवान ने जो देखने में अपनी आमरसे डेुढ़ी अधिक उम्र का पता होता था हानपता कांप एक बुज़ुर्ग की सेवा में ्तोनेलर अमानत पेश करते हुए लब कश्ाई है. बुज़ुर्ग जो स्वयं भी सिर झाड़ मुंह फाड़ नजर आते थे आप जैसे एक सिर आत्मघाती को आश्चर्यजनक और ाज्यग़बाब से देख रहे थे कि वाललर क्या ज़ोक़ दे्त है. उन्होंने अपनी सखानह नुमा लाल आँखों में दिरआये रिुद के मोती 'दातों तले होंठ यबव बीजा में रख कर अपनी दाढ़ी में अवशोषण किए और बड़ी सावधानी से मानो हुए.''मियाँ इसमें चिंता की कोई बात नहीं. आपने ना अधिकार तकलीफ़ है. मुझे याद आता या ज़रूरत पड़ती तो मैं उसे लेने आपकी सेवा में हाज़िर हो जाता. आपने िअहस तकलीफ़ है.''
''तकलीफ़ क्यों यह तो मेरे लिए अंतर्राष्ट्रीय राहत है कि मैं आपके किसी काम आयक. वास्तव में आप की तरह मैं भी समअफ़्रहोो क्या पता शाम तक प्रति सरकार करना पड़जाे इसलिए आपको अधिक तकलीफ हो सकती है? मैंने सोचा आप यूँ भी विदेश जाना है आपको इसकी जरूरत चाहिए होगा 'बस में चला आया.''कम पम्मीदर और द वृध्द युवा ने बुज़ुर्ग की सेवा में बहुत साहित्य व सम्मान से जवाब निवेदन किया.
बुज़ुर्ग के चेहरे से जाहिर हो रहा था कि वह किसी करब को छुपाने की नाकाम प्रयास कर रहे हैं कुछ कहना चाहते हैं लेकिन कुछ ऐसी यीद बीद है कि कह नहीं नरहे. उधर अतिथि दम वापसी के लिए मदाे अनुमति ्धर्मीभाषा को तिरारसी पजालत. आने वाला जाने के लिए अनुमति ालबी का प्रतीक्षा की निगाहों का केंद्र मेजबान या साहब गृह और निगाहें उनके दिमाग से दिल तक पीोस्त होती महसूस हो रही थीं और वह सौभाग्य ्सुरल को स्वीकार करने के लिए की चीनी के बावजूद तैयार नहीं है. फिर ज़रा संभल प्रतिद्वन्द्वी को भी बैठने को कहा और खुद भी ज़रा से कोच पर टिक गए. गला िखनखारि कुछ कहते कहते फिर रह गए और अपनी एक र्बिाी दिल ही दिल दोहराव
हर कुछ के तकरार नज़र की साहित्यिक है
पर करें क्या इश्क़ की प्रकृति ही यही है
बन जाक न बीगाना अंदाज़ प्यार
इतना न पास आई उचित ही यही है
किस्सा यह था कि जो बटुए लौटा ने आया था. हर दिलआ् ीज़ शायर था जिसके कलाम में चढ़ाव के बावजूद जीवन में उतार ही उतार थे. वह आर्थिक रूप से बहुत ितनलहस्त था. कुछ अपनों के कृपया कुछ गैरों के सितम के कारण जीवन इस से दूर होती चली जा रही थी. अजमेर में पैदा होने वाला और सु्जा ग़रीब नवाज़ की चैखट पर शेर सुारी और कमसंी की अधिक स्थलों तय करने वाला यह बत्षाल ितनलहस्त और फ़ाक़ह मस्त लोगों से बहुत प्यार कर ता था और उसके चाहने वाले भी इसे खूब रखते थे लेकिन यतत और शरपसंद तो हर जगह हर किसी के होते हैं. फ़ाक़ह मस्ती के बावजूद यतदेि और शर ने यह देखकर कि यह मस्त तो बड़ा शायर होता जा रहा है इसके लिए इंडोो फलों और तुर्कारियों का सामान है. मगर यह चीजें खुद उन जैसे वड़े हुए लोगों के म्त सल थे जहां मशारह होता फ़ाक़ह मस्त कलाम प्रदान करता उस पर बारिश शुरू करा दी जाती. इस''जेहाद''में ऐसे भी प्यार भरे ग़ज़ाल हैं जिन्होंने कहा कि
इस ग़म को ग़म हस्ती तो मेरे दिल न बना
आभत मुश्किल है उसे और मुश्किल नहीं बना

और उनका दावा यह भी है कि

मैं आईने के भीतर भी हूँ और आईने के बाहर भी
मेरे अस्तित्व की ुयत् में दवै कैसी
मशहूर म्यसस डॉक्टर साजिद अमजद ने 18-17 साल पहले म्ानामर सिर ल्न् में अहवाल दर्ज किया था. जिसमें अंडे फल तुर्कारियों की बार न कराने वाले शेख जूते वाले दो तीन नआुरति और एकाध बच्चा लोकतांत्रिक का उल्लेख था एक बुद्धिजीवी ने खंडन मीडिया क्या था मगर जिस कम नसीब बल्कि यर्मा नसीब शायर को क्र्ेलर अभ्यास करने वालों के मुख्य पात्रों में से किसी की खंडन सामने नहीं आई शायद कविता में उसी को शीुेलर समर्थन कहते हैं.
बात चलती कहाँ है पहुंची कहां है. जिन दो पात्रों और बटुए का ज़िक्र हो रहा था. बटुए मालिक को शायद आपने पहचान लिया होगा जो साहित्यिक ज़ोक़ के दिलिदादोह वह बटुए वापस पहुँचाने वाले बीमार और लाचार को भी पहचान गए होंगे, लेकिन इसी लेख के अंत तक हर पढ़ने वाला दोनों को पहचान जाएगा. इसलिए यह कहानी तो है लेकिन कल्पना नहीं हां अफ़वािेलर सच्चाई ज़रूर है
दिल के अफ़वाने निगाहों की भाषा तक पहुँचे
बात चली निकली है अब देखे कहाँ तक पहुँचे
बटुए वापस पहुँचाने वाला तंग दस्त तफासर मस्त स्थापना से 15 साल पहले अजमेर शरीफ़ में पैदा हुआ था 'पाकिस्तान रजर् और 16 साल से कम समय में अल्लाह को प्यारा हो गया. भारत प्रेम का अंग बन चुका ईमान थी.
इस स्थिति जीवन का अनुमान आपने क्या होगा. रंग कलाम भी देखें कृपया.
तुम न मानो मगर सच है
इश्क़ इंसान की ज़रूरत है
इस महफ़िल में बैठ कर देखो
जीवन कितना खूबसूरत है
जी रहा होोत विश्वास के साथ
जीवन को मेरी ज़रूरत है
... ... * ... ... * ... ....
तज़ाद भावनाओं में गंभीर स्थान आया तो क्या करो गे
मैं रो रहा हूँ तुम हंस रहे हो में मसकरएा तो क्या करो गे
कुछ अपने दिल पर ज़ख्म खाए मेरे लहू की बहा ुर कब तक
मुझे सहारा बनाने वालों लधखड़ा्या तो क्या करो गे
ऐसे ही प्यार से हुसैन और दिल िशीन शेर इस शायर का ्स्सर हैं. यदि जीवित रहता और सरकार उस पर तरस खाती तो भी वह शायद वह पीरात स्वीकार नहीं करता जो शायर अपने बटुए भूल कर आया था वह भी आर्थिक रूप सुन्षाल न था इस सहायक ने आींक विक्रेता का पेशा भी राह और ुरसम दुनिया में ्षफ़ोो ाुरबुला क्षतिपूर्ति फ़र्ुपिकोो पर चला दिया. उसने देखा कि युवक को पैसे की अधिक जरूरत है और वह सुतदार भी बहुत है सो अपने बटुए नज़र बचा के वहां छोड़ आया कि शायद तरह ग़रीब की आवश्यकता पूरी हो वास्तव में उस ने ्ादरह बड़ी बे स्थरै के साथ''भूल पर चला''कर दिया था कि
वह अली सिकंदर जिगर मरादधबादे .... दूसरों की इज़्ज़त नफ़्स का बहुत सम्मान करता था मगर वह जो बटुए लौटा ने गया किसी का दस्त िंगंर बनदुरल इस नर्स नर्गिस जिसने क्वेटा के अस्पताल में बीमार सीमा स्तर मदद की थी ओ ुर''ईसा''की पीरोकारि के बाजूतम्शरल बह इस्लाम हो करबीमार के आसत में आ गई थी कि अल्लाह तार्क ौताली ने इसके ायसार से प्रभावित हो कर इस दूल्हा कोचन्द दिन जीवन और अता दिया 'हां इस सुदार शायर को विश्व क़ाबिल अजमेरी के नाम से जानती है जो 46 साल पहले केवल 1 3 साल की उम्र में हैदराबाद सिंध में खालस वास्तविक से जा मिला. आज उसकी छवि एक अखबार में देखी तो आंसोेलक ने इसका उल्लेख किया.
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