Zindagi sahi hi Sabko mili hai

by khumaar on June 29, 2011, 11:27:35 AM
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khumaar
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कोई बसों में चक्कर लगा के जी रहा है
कोई ट्रेन की सीटी ही सपनो में सुन रहा है
कोई ऐ सी में बैठके भी थका रहता है
कोई सर के नीचे ईंट रख के सोता है
कोई अपनी ज़िन्दगी में लगा रहता है
कोई दुसरे की ज़िन्दगी में ही लगा रहता है
कोई अखबार के पन्नों में ही दिन निकाल देता
कोई बिन पढ़े ही हाकर को पैसे दे दिया है करता
किसी की आँख खुलती है सपनो के आसमान पर
किसी की आँख खुलती है तो टिकती है आसमान पर
पान की दूकान पर खड़े हुए कोई दिन बिताता है
कोई लाल पीले रंग में ही रंगा नज़र आता है
कोई अपनी धुन में जिए जा रहा है
कोई एक ही धुन सुने जा रहा है
किसी को तो आँख नाम सी रहती है
किसी को किसी की कमी नहीं खलती है
कोई मुद्दों से फिरा जा रहा है
किसी को मुद्दों से फिराया जा रहा है
कोई नाटक के मंच की तरह ज़िन्दगी को देखता है
कोई जितना भी बोलता है बहुत तोल के बोलता है
कोई बेगानों के ग़म पर भी रोता है
कोई अपनों को ग़म देके हँसता है
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल मरता हो
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल जीता हो
कोई मर कर भी जिंदा रहता है
कोई जिंदा है पता नहीं चलता है
ज़िन्दगी कैसी कैसी किस किस को मिली है
पर ज़िन्दगी सही ही सबको मिली है
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Sanjeev kash
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«Reply #1 on: June 29, 2011, 11:40:59 AM »
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jo mila jisko us hisab se jiya
Har ek shaks ki apni ek kahani hai
Zindgi tou jeete hai..n sab magar
Koi hassta hai isme to kisi ki aankh mein paani hai
Kisi ke liye hai ye safar shuana
kisi ke liye ye bemani hai
Koshish Karo ke har pal sakoon se nikal jaye
Warna ajj kal to sab ko jeene mein pareshani hai.
Zindgi to milti hai sabko ye tekh hai
Par har zindgi ki apni ek kahani hai..........
 
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Satish Shukla
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«Reply #2 on: June 30, 2011, 06:08:36 AM »
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Achchha hai..Khumaar Sahab
Bahut khoob..

Satish Shukla 'Raqeeb'
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Sanjeev kash
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«Reply #3 on: June 30, 2011, 09:39:19 AM »
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Appse hi khyal mila tha likh diya app ko accha laga ..shukriya
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Sanjeev kash
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«Reply #4 on: June 30, 2011, 09:53:11 AM »
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App saath dete rahiye hum koshish karte rahenge
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khujli
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«Reply #5 on: July 02, 2011, 05:53:03 AM »
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कोई बसों में चक्कर लगा के जी रहा है
कोई ट्रेन की सीटी ही सपनो में सुन रहा है
कोई ऐ सी में बैठके भी थका रहता है
कोई सर के नीचे ईंट रख के सोता है
कोई अपनी ज़िन्दगी में लगा रहता है
कोई दुसरे की ज़िन्दगी में ही लगा रहता है
कोई अखबार के पन्नों में ही दिन निकाल देता
कोई बिन पढ़े ही हाकर को पैसे दे दिया है करता
किसी की आँख खुलती है सपनो के आसमान पर
किसी की आँख खुलती है तो टिकती है आसमान पर
पान की दूकान पर खड़े हुए कोई दिन बिताता है
कोई लाल पीले रंग में ही रंगा नज़र आता है
कोई अपनी धुन में जिए जा रहा है
कोई एक ही धुन सुने जा रहा है
किसी को तो आँख नाम सी रहती है
किसी को किसी की कमी नहीं खलती है
कोई मुद्दों से फिरा जा रहा है
किसी को मुद्दों से फिराया जा रहा है
कोई नाटक के मंच की तरह ज़िन्दगी को देखता है
कोई जितना भी बोलता है बहुत तोल के बोलता है
कोई बेगानों के ग़म पर भी रोता है
कोई अपनों को ग़म देके हँसता है
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल मरता हो
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल जीता हो
कोई मर कर भी जिंदा रहता है
कोई जिंदा है पता नहीं चलता है
ज़िन्दगी कैसी कैसी किस किस को मिली है
पर ज़िन्दगी सही ही सबको मिली है



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marhoom bahayaat
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«Reply #6 on: July 02, 2011, 10:06:44 AM »
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कोई बसों में चक्कर लगा के जी रहा है
कोई ट्रेन की सीटी ही सपनो में सुन रहा है
कोई ऐ सी में बैठके भी थका रहता है
कोई सर के नीचे ईंट रख के सोता है
कोई अपनी ज़िन्दगी में लगा रहता है
कोई दुसरे की ज़िन्दगी में ही लगा रहता है
कोई अखबार के पन्नों में ही दिन निकाल देता
कोई बिन पढ़े ही हाकर को पैसे दे दिया है करता
किसी की आँख खुलती है सपनो के आसमान पर
किसी की आँख खुलती है तो टिकती है आसमान पर
पान की दूकान पर खड़े हुए कोई दिन बिताता है
कोई लाल पीले रंग में ही रंगा नज़र आता है
कोई अपनी धुन में जिए जा रहा है
कोई एक ही धुन सुने जा रहा है
किसी को तो आँख नाम सी रहती है
किसी को किसी की कमी नहीं खलती है
कोई मुद्दों से फिरा जा रहा है
किसी को मुद्दों से फिराया जा रहा है
कोई नाटक के मंच की तरह ज़िन्दगी को देखता है
कोई जितना भी बोलता है बहुत तोल के बोलता है
कोई बेगानों के ग़म पर भी रोता है
कोई अपनों को ग़म देके हँसता है
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल मरता हो
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल जीता हो
कोई मर कर भी जिंदा रहता है
कोई जिंदा है पता नहीं चलता है
ज़िन्दगी कैसी कैसी किस किस को मिली है
पर ज़िन्दगी सही ही सबको मिली है

BAHUT KHOOB
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