लोग कहते हैं, मैं उसे माफ कर दूँ
और याद आ जाता है मुझे वो दिन
जब पढ़ाई खत्म करने के बाद उसने
बिजनेस करने की इच्छा जताई थी
और हमने एक कम्पनी बनाई थी
फिर मैंने उससे कहा था
मेरा काम खत्म, तुम्हारा शुरू
अब ये कम्पनी तुम्हारी है
इसे चलाना तुम्हारी जिम्मेदारी है
उसने कहा था पापा ठीक है लेकिन
बिना आपके कुछ ना होगा
नौकरी से समय निकाल कर
आपको यहाँ आना ही होगा.
फिर एक दिन जब मै
उसके चेम्बर में पहुँचा
तो उसकी खाली कुर्सी के सामने
एक लड़की को बैठे देखा
उसने मुझ से कहा आइए सर बैठिये
मैंने पूछा क्या आप मुझे पहचानती हैं
उसने कहा आप एम.ड़ी. सर के पापा हैं
और मैं एम..ड़ी का बाप जाने किस धुन में
एम. ड़ी. की कुर्सी पर बैठ गया
मैंने उससे पूछा आप कौन हैं
उसने ख़ुद को सेक्रेटरी टू एम.ड़ी. बताया
मैंने पूछा आपकी प्रोफ़ाइल क्या है
उसने कहा "एम.डी. सर को सब पता है"
जवाब सुनते ही मैं सन्न रह गया
मेरा अनुभवी मन समझ गया
"इकलौता बेटा ख़ुद में बड़ा हो गया है
उसने पापा का विकल्प ढूँढ लिया है".
फिर उस दिन रात को
हमेशा जी पापा जी कहने वाला बेटा
मुझ से बोला
पापा एम.डी. की कुर्सी
बैठ कर घूमने को नही होती
इसके लिए एम्यूजमेंट पार्क बने हैं
वहां हर तरह की राइड्स होती हैं
कोई और होता तो ऐसा सुन कर
मेरी आँखों में खून उतर आता लेकिन
वो मेरा बेटा था इसलिये
मेरा सारा खून उतर कर
मेरे पैरों में आ गया और
वो इतने भारी हो गए कि आज तक
उसकी कम्पनी की ओर नही उठे.
आज वो लड़की उसकी बीवी है
उसने एक ओर कम्पनी
खड़ी कर ली है
उसकी माँ बताती है कि दोनों में
अक्सर खटपट होती है
माँ कहती है, उसे माफ कर दो
लोग कहते हैं, उसे माफ कर दो
मै कहता हूँ, ये मेरी, मेरी परवरिश की कमी है
मै ख़ुद उसका अपराधी हूँ
उसे कैसे माफ कर दूँ