तेरे कारण काला हूँ मै।

by shambhu_007 on July 17, 2009, 03:37:29 AM
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shambhu_007
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हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥
कलि तेरी खिलने से पहले
उसपर मै मडराताहूँ॥
चूस सुगन्धित रस को तेरे
आत्म्संतुस्ती पाता हूँ॥
काले तन पर नाज़ मुझे है।
तुम भी मुझपर मरती हो॥
चटक-मटक से हरदम रहती।
धुप छाव भी सहती हो॥
रंग बदलते देर न लगाती
तेरा रूप निराला है॥
तेरे अन्दर अर्पण है वह
जो तेरा चाहने वाला..
चढ़ते यौवन आँख मिचौली।
मुझसे करने लगती हो॥
बन थन कर मेरी राह जोहती।
हस हस कर बातें करती हो॥
तेरी महक को हवा में सूंघकर
बड़ी दूर से आया हूँ॥
आते ही तेरी बाहों में
अपनी बाह सताया हूँ॥
जो सुख तेरी इस कलियाँ में।
वह सुख कही न आयेगा॥
रमते जमते कही भी घूमू।
कोई नही मुझको भाएगा॥
सूर्यास्त बाहों में कस कर।
मुझको ले सो जाती हो॥
प्रातः काल संघ मेरे उठती।
फ़िर मुझको नहलाती हो॥
कितना कोई मुझे बुलाये
कही नही मै जाता हूँ॥
तेरे ही द्वारे में आके
तेरी अलख जगाता हूँ॥
हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥
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Roja
Guest
«Reply #1 on: July 19, 2009, 05:39:12 PM »
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हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥
कलि तेरी खिलने से पहले
उसपर मै मडराताहूँ॥
चूस सुगन्धित रस को तेरे
आत्म्संतुस्ती पाता हूँ॥
काले तन पर नाज़ मुझे है।
तुम भी मुझपर मरती हो॥
चटक-मटक से हरदम रहती।
धुप छाव भी सहती हो॥
रंग बदलते देर न लगाती
तेरा रूप निराला है॥
तेरे अन्दर अर्पण है वह
जो तेरा चाहने वाला..
चढ़ते यौवन आँख मिचौली।
मुझसे करने लगती हो॥
बन थन कर मेरी राह जोहती।
हस हस कर बातें करती हो॥
तेरी महक को हवा में सूंघकर
बड़ी दूर से आया हूँ॥
आते ही तेरी बाहों में
अपनी बाह सताया हूँ॥
जो सुख तेरी इस कलियाँ में।
वह सुख कही न आयेगा॥
रमते जमते कही भी घूमू।
कोई नही मुझको भाएगा॥
सूर्यास्त बाहों में कस कर।
मुझको ले सो जाती हो॥
प्रातः काल संघ मेरे उठती।
फ़िर मुझको नहलाती हो॥
कितना कोई मुझे बुलाये
कही नही मै जाता हूँ॥
तेरे ही द्वारे में आके
तेरी अलख जगाता हूँ॥
हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥


something very different and nice shayari... Shambu ji
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smardia
Guest
«Reply #2 on: July 19, 2009, 05:45:58 PM »
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Kale bhawre k jeevan ka bada achha varnan kiya hai aapne.... Applause
Devnagri lipi mai kavita ka asli roop nazar aata hai..... Applause


हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥
कलि तेरी खिलने से पहले
उसपर मै मडराताहूँ॥
चूस सुगन्धित रस को तेरे
आत्म्संतुस्ती पाता हूँ॥
काले तन पर नाज़ मुझे है।
तुम भी मुझपर मरती हो॥
चटक-मटक से हरदम रहती।
धुप छाव भी सहती हो॥
रंग बदलते देर न लगाती
तेरा रूप निराला है॥
तेरे अन्दर अर्पण है वह
जो तेरा चाहने वाला..
चढ़ते यौवन आँख मिचौली।
मुझसे करने लगती हो॥
बन थन कर मेरी राह जोहती।
हस हस कर बातें करती हो॥
तेरी महक को हवा में सूंघकर
बड़ी दूर से आया हूँ॥
आते ही तेरी बाहों में
अपनी बाह सताया हूँ॥
जो सुख तेरी इस कलियाँ में।
वह सुख कही न आयेगा॥
रमते जमते कही भी घूमू।
कोई नही मुझको भाएगा॥
सूर्यास्त बाहों में कस कर।
मुझको ले सो जाती हो॥
प्रातः काल संघ मेरे उठती।
फ़िर मुझको नहलाती हो॥
कितना कोई मुझे बुलाये
कही नही मै जाता हूँ॥
तेरे ही द्वारे में आके
तेरी अलख जगाता हूँ॥
हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।
सदियों से चूसते आया हूँ॥
तेरे कारण काला हूँ मै।
रूप कलूटा पाया हूँ॥

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shambhu_007
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«Reply #3 on: October 05, 2009, 09:02:30 AM »
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thankyou
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deepika_divya
Guest
«Reply #4 on: October 11, 2009, 03:49:37 AM »
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Bahoot Bahoot Khoob Shambu ji
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madhuwesh
Guest
«Reply #5 on: October 11, 2009, 05:25:30 AM »
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Bahut khoob Sabhu ji,very touching and wonderful creation,excellent icon_thumleft Applause Applause Applause Applause Applause

Sambhu ji aapke kavita padkar ek khayal aaye mann mein.
insaan kaala ho ya goraa rang ka dil acha hona chaiye.
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