बिजली, आग और बिना मुंडेर की छत --------सृष्टिराज चिंतक

by srishti raj chintak on July 17, 2013, 05:38:09 PM
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srishti raj chintak
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मेरे पड़ौस में एक "माँ" रहती है
बूढ़ी, विधवा
उसके वयस्क बच्चे अक्सर उसे
मारते हैं, पीटते हैं
एक दिन मैंने उससे कहा
आप ये सब क्यों सहती हैं
गाँव में आपकी खेती-बाड़ी है
वहां क्यों नही रहती हैं
वह बोली
पहले ये बच्चे छोटे थे,नासमझ थे
मैं इन्हे टोकती थी
उलटे-सीधे काम करने से रोकती थी
नही मानते थे तो धमकाती थी
कभी प्यार से पीठ पर
हल्की सी धौल जमाती थी
और ये मान जाते थे
आज ये बड़े हो गए हैं
अपने पैरों पर खड़े हो गये हैं
लेकिन नासमझ वैसे के वैसे हैं
मैं आज भी डरती हूँ
कहीं ये "बिजली" से चिपक ना जाएँ
"आग" से  झुलस ना जाएँ
"बिना मुँडेर की छत पर" दौड़ते हुए
चाँद को पकड़ने के चक्कर में
नीचे ना सरक जाएँ
इसलिये मैं इन्हे टोकती हूँ
कभी-कभी बढ कर इनकी
राहें भी रोकती हूँ
फर्क बस इतना है
पहले ये मान जाते थे
अब चिल्लाते हैं
मैं प्यार से धौल जमाती थी
ये लतियाते हैं
शायद जमाना बदल गया है
और बच्चे भी बदल गए हैं
लेकिन मैं "माँ" हूँ
मैं ना कभी बदली थी
ना कभी बदलूंगी
मैं इन्हें छोड़ कहीं ना जाऊंगी
इन्हें मिटने ना दूँगी
ख़ुद मिट जाऊँगी
क्योंकि ये मेरे लगाए फूल हैं
मैंने इन्हें अपने
दूध,आँसू,लहू पसीने से सींचा है
कुटूगी-पिटूगी लेकिन मैं
इस पर आँच ना आने दूँगी
क्योंकि ये मेरा बनाया
मेरे स्वप्नों का बागीचा है
अपनी सुध-बुध खो कर
यह सब सुन रहा "मैं"
अचानक होश में आया
मैंने देखा कि
उस "माँ" के कदमों में
मेरा सिर ख़ुद-ब-ख़ुद झुका हुआ है
और कुछ मोती मेरी आंखों से निकल कर
उन पर गिरे हुए हैं


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Advo.RavinderaRavi
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«Reply #1 on: July 17, 2013, 05:49:32 PM »
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मेरे पड़ौस में एक "माँ" रहती है
बूढ़ी, विधवा
उसके वयस्क बच्चे अक्सर उसे
मारते हैं, पीटते हैं
एक दिन मैंने उससे कहा
आप ये सब क्यों सहती हैं
गाँव में आपकी खेती-बाड़ी है
वहां क्यों नही रहती हैं
वह बोली
पहले ये बच्चे छोटे थे,नासमझ थे
मैं इन्हे टोकती थी
उलटे-सीधे काम करने से रोकती थी
नही मानते थे तो धमकाती थी
कभी प्यार से पीठ पर
हल्की सी धौल जमाती थी
और ये मान जाते थे
आज ये बड़े हो गए हैं
अपने पैरों पर खड़े हो गये हैं
लेकिन नासमझ वैसे के वैसे हैं
मैं आज भी डरती हूँ
कहीं ये "बिजली" से चिपक ना जाएँ
"आग" से  झुलस ना जाएँ
"बिना मुँडेर की छत पर" दौड़ते हुए
चाँद को पकड़ने के चक्कर में
नीचे ना सरक जाएँ
इसलिये मैं इन्हे टोकती हूँ
कभी-कभी बढ कर इनकी
राहें भी रोकती हूँ
फर्क बस इतना है
पहले ये मान जाते थे
अब चिल्लाते हैं
मैं प्यार से धौल जमाती थी
ये लतियाते हैं
शायद जमाना बदल गया है
और बच्चे भी बदल गए हैं
लेकिन मैं "माँ" हूँ
मैं ना कभी बदली थी
ना कभी बदलूंगी
मैं इन्हें छोड़ कहीं ना जाऊंगी
इन्हें मिटने ना दूँगी
ख़ुद मिट जाऊँगी
क्योंकि ये मेरे लगाए फूल हैं
मैंने इन्हें अपने
दूध,आँसू,लहू पसीने से सींचा है
कुटूगी-पिटूगी लेकिन मैं
इस पर आँच ना आने दूँगी
क्योंकि ये मेरा बनाया
मेरे स्वप्नों का बागीचा है
अपनी सुध-बुध खो कर
यह सब सुन रहा "मैं"
अचानक होश में आया
मैंने देखा कि
उस "माँ" के कदमों में
मेरा सिर ख़ुद-ब-ख़ुद झुका हुआ है
और कुछ मोती मेरी आंखों से निकल कर
उन पर गिरे हुए हैं



बहुत खूब भाई वाह.
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Sapna Pandit
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«Reply #2 on: July 17, 2013, 05:56:48 PM »
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good one
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marhoom bahayaat
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«Reply #3 on: July 17, 2013, 05:59:31 PM »
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मेरे पड़ौस में एक "माँ" रहती है
बूढ़ी, विधवा
उसके वयस्क बच्चे अक्सर उसे
मारते हैं, पीटते हैं
एक दिन मैंने उससे कहा
आप ये सब क्यों सहती हैं
गाँव में आपकी खेती-बाड़ी है
वहां क्यों नही रहती हैं
वह बोली
पहले ये बच्चे छोटे थे,नासमझ थे
मैं इन्हे टोकती थी
उलटे-सीधे काम करने से रोकती थी
नही मानते थे तो धमकाती थी
कभी प्यार से पीठ पर
हल्की सी धौल जमाती थी
और ये मान जाते थे
आज ये बड़े हो गए हैं
अपने पैरों पर खड़े हो गये हैं
लेकिन नासमझ वैसे के वैसे हैं
मैं आज भी डरती हूँ
कहीं ये "बिजली" से चिपक ना जाएँ
"आग" से  झुलस ना जाएँ
"बिना मुँडेर की छत पर" दौड़ते हुए
चाँद को पकड़ने के चक्कर में
नीचे ना सरक जाएँ
इसलिये मैं इन्हे टोकती हूँ
कभी-कभी बढ कर इनकी
राहें भी रोकती हूँ
फर्क बस इतना है
पहले ये मान जाते थे
अब चिल्लाते हैं
मैं प्यार से धौल जमाती थी
ये लतियाते हैं
शायद जमाना बदल गया है
और बच्चे भी बदल गए हैं
लेकिन मैं "माँ" हूँ
मैं ना कभी बदली थी
ना कभी बदलूंगी
मैं इन्हें छोड़ कहीं ना जाऊंगी
इन्हें मिटने ना दूँगी
ख़ुद मिट जाऊँगी
क्योंकि ये मेरे लगाए फूल हैं
मैंने इन्हें अपने
दूध,आँसू,लहू पसीने से सींचा है
कुटूगी-पिटूगी लेकिन मैं
इस पर आँच ना आने दूँगी
क्योंकि ये मेरा बनाया
मेरे स्वप्नों का बागीचा है
अपनी सुध-बुध खो कर
यह सब सुन रहा "मैं"
अचानक होश में आया
मैंने देखा कि
उस "माँ" के कदमों में
मेरा सिर ख़ुद-ब-ख़ुद झुका हुआ है
और कुछ मोती मेरी आंखों से निकल कर
उन पर गिरे हुए हैं




salute to the mother, salute to this nazm with rau,sir
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sksaini4
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«Reply #4 on: July 17, 2013, 06:26:24 PM »
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Mohammad Touhid
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«Reply #5 on: July 17, 2013, 09:33:57 PM »
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awesome awesome awesome..........

bahut bahut bahut khoob...

ise padhkar bas yahi kehne ko dil karta hai...

MAA TUJHE SALAAM.....
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SURESH SANGWAN
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«Reply #6 on: July 17, 2013, 09:37:53 PM »
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khamosh_aawaaz
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«Reply #7 on: July 17, 2013, 10:00:40 PM »
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मेरे पड़ौस में एक "माँ" रहती है
बूढ़ी, विधवा
उसके वयस्क बच्चे अक्सर उसे
मारते हैं, पीटते हैं
एक दिन मैंने उससे कहा
आप ये सब क्यों सहती हैं
गाँव में आपकी खेती-बाड़ी है
वहां क्यों नही रहती हैं
वह बोली
पहले ये बच्चे छोटे थे,नासमझ थे
मैं इन्हे टोकती थी
उलटे-सीधे काम करने से रोकती थी
नही मानते थे तो धमकाती थी
कभी प्यार से पीठ पर
हल्की सी धौल जमाती थी
और ये मान जाते थे
आज ये बड़े हो गए हैं
अपने पैरों पर खड़े हो गये हैं
लेकिन नासमझ वैसे के वैसे हैं
मैं आज भी डरती हूँ
कहीं ये "बिजली" से चिपक ना जाएँ
"आग" से  झुलस ना जाएँ
"बिना मुँडेर की छत पर" दौड़ते हुए
चाँद को पकड़ने के चक्कर में
नीचे ना सरक जाएँ
इसलिये मैं इन्हे टोकती हूँ
कभी-कभी बढ कर इनकी
राहें भी रोकती हूँ
फर्क बस इतना है
पहले ये मान जाते थे
अब चिल्लाते हैं
मैं प्यार से धौल जमाती थी
ये लतियाते हैं
शायद जमाना बदल गया है
और बच्चे भी बदल गए हैं
लेकिन मैं "माँ" हूँ
मैं ना कभी बदली थी
ना कभी बदलूंगी
मैं इन्हें छोड़ कहीं ना जाऊंगी
इन्हें मिटने ना दूँगी
ख़ुद मिट जाऊँगी
क्योंकि ये मेरे लगाए फूल हैं
मैंने इन्हें अपने
दूध,आँसू,लहू पसीने से सींचा है
कुटूगी-पिटूगी लेकिन मैं
इस पर आँच ना आने दूँगी
क्योंकि ये मेरा बनाया
मेरे स्वप्नों का बागीचा है
अपनी सुध-बुध खो कर
यह सब सुन रहा "मैं"
अचानक होश में आया
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उस "माँ" के कदमों में
मेरा सिर ख़ुद-ब-ख़ुद झुका हुआ है
और कुछ मोती मेरी आंखों से निकल कर
उन पर गिरे हुए हैं





naaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaice
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Iftakhar Ahmad
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«Reply #8 on: July 17, 2013, 11:05:43 PM »
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Excellent, beautiful.
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Sudhir Ashq
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«Reply #9 on: July 18, 2013, 12:20:40 AM »
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@Kaash
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«Reply #10 on: July 18, 2013, 02:57:41 AM »
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badhia!
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aqsh
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«Reply #11 on: July 18, 2013, 01:54:12 PM »
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Hats off to youuuuu...
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nandbahu
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«Reply #12 on: July 18, 2013, 07:45:40 PM »
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srishti raj chintak
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«Reply #13 on: July 22, 2013, 12:44:16 PM »
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Thanks to all,regards.
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«Reply #14 on: August 27, 2013, 01:23:57 PM »
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Congratulations,

Your work has been featured in "Aug 2013 Yoindia Shayariadab Newsletter". We hope you will continue to grace this Bazm with your beautiful words always. Comments and feedback is appreciated.
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