स्वर्गीय श्रद्धेय भदौरिया जी (डॉ. शिव बहादुर सिंह)
को विनम्र श्रद्धांजलि टिप्पणी : दिनांक १९.०८.२०१३, सोमवार को श्रद्धेय भदौरिया जी के श्राद्ध में सम्मिलित
होने के लिए लालगंज, रायबरेली जाते समय मन में जो श्रद्धा-प्रवाह उमड़ा, उसे छन्दों
में बाँधने का प्रयास किया है।
*''हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी??'' - भदौरिया जी की प्रसिद्ध कविता, 'नदी का
बहना मुझ में हो' की एक पंक्ति है। भदौरिया जी के स्वर में इस कविता की वीडियो
क्लिपिंग प्रस्तुत है।
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'शिव' बिन सूना गीत-शिवालय.…
ब्रह्मनाद में लीन हुआ स्वर,
महाज्योति में ज्योति हुई लय।
जाने को सब जाते इक दिन,
यह असार संसार छोड़ते।
तुम परम्परा के वाहक थे,
कैसे शाश्वत नियम तोड़ते??
किन्तु, तुम्हारे जाने से 'शिव'
सूना - सूना गीत - शिवालय।।
हर प्यासे के लिए नदी थे;
हर कोई भर लाता गगरी।
तृषा बुझाएंगे अब कैसे,
हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी??
* जब तक जीवित रहे, धरा पर
थे शिवत्व के जीवित परिचय।।
तुम चन्दन वन की छाया थे-
सघन, जहाँ शीतल होता मन।
'शिव' तेरा सान्निध्य क्षणिक भी,
पारस सम, करता था कंचन।।
क्षीण भले, क्षयमान कलेवर,
पर, कृतित्व की आभा अक्षय।।
-अरुण मिश्र.