एक हुंकार -अन्ना हजारे की समर्थन में

by kavyadharateam on August 22, 2011, 05:00:15 PM
Pages: [1]
Print
Author  (Read 1639 times)
kavyadharateam
Guest
एक हुंकार -अन्ना हजारे की समर्थन में ....कृपया इसे अधिकतम लोगों का पहुचाएं
 
 
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे
बात अपनी अब तो कह दो ,कब तलक खामोश रहोगे
बढ के  अपना मांग लो हक़,किस बात का है खौफ तुमको
कब तलक मिमयाते रहोगे ,कब तलक खामोश रहोगे ..
 
ख़ुद  ज़हर पीकर भला क्यों, हम दूध सांपो को पिलायें
क्यों भूखे रखकर  अपने बच्चें, रोटी सियासत  को खिलाएं
दब के हुकुमत से  रहें क्यों ,हम ही जब सरकार बनाएं
सरकार है आवाम की , फिर क्यों वो आवाम को सताएं
ज़ुल्म कब तलक सहते रहोगे, कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
पैदा होने से मरण तक , तुम बांटते रहना बस रिश्वत
पढाई-लिखाई,और कमाई कब तलक समझोगे किस्मत
हक़ की तरह हक़ को मांगो,भीख मत तुम समझो हज़रत
वरना इन दुर्योधन के हाथों बच  ना सकेगी घर की अस्मत  
अब तो तुम गांडीव उठा लो ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
हक़ है तुम्हें ये पूछने का , रंक से बने तुम कैसे  राजा
ग़र है कोई आसान रस्ता ,तो मन्त्र वो सबको बता जा
या मान लो फिर सिर झुकाकर, जम्हूरियत शर्मिंदा की है
तुमने ही उनसे रहज़नी की बना  रहनुमा जिन्होंने नवाज़ा
पकड़ गिरेबाँ पूछ लो आज ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .

आज फिर एक गांधी अपने घर  से पैदल चल दिया है
फिर अपना जीवन आज उसने नाम वतन के कर दिया है
एक रौशनी की आस में  तूफ़ान से "दीपक "लड़ लिया है
अब सम्भलों अंधेरों तुमने पहन सफेदी बहुत छल क्या है
लेकर मशाल उतरो सड़क पे ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे

@कवि दीपक शर्मा
Logged
kavyadharateam
Guest
«Reply #1 on: August 22, 2011, 05:00:47 PM »
एक हुंकार -अन्ना हजारे की समर्थन में ....कृपया इसे अधिकतम लोगों का पहुचाएं
 
 
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे
बात अपनी अब तो कह दो ,कब तलक खामोश रहोगे
बढ के  अपना मांग लो हक़,किस बात का है खौफ तुमको
कब तलक मिमयाते रहोगे ,कब तलक खामोश रहोगे ..
 
ख़ुद  ज़हर पीकर भला क्यों, हम दूध सांपो को पिलायें
क्यों भूखे रखकर  अपने बच्चें, रोटी सियासत  को खिलाएं
दब के हुकुमत से  रहें क्यों ,हम ही जब सरकार बनाएं
सरकार है आवाम की , फिर क्यों वो आवाम को सताएं
ज़ुल्म कब तलक सहते रहोगे, कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
पैदा होने से मरण तक , तुम बांटते रहना बस रिश्वत
पढाई-लिखाई,और कमाई कब तलक समझोगे किस्मत
हक़ की तरह हक़ को मांगो,भीख मत तुम समझो हज़रत
वरना इन दुर्योधन के हाथों बच  ना सकेगी घर की अस्मत  
अब तो तुम गांडीव उठा लो ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
हक़ है तुम्हें ये पूछने का , रंक से बने तुम कैसे  राजा
ग़र है कोई आसान रस्ता ,तो मन्त्र वो सबको बता जा
या मान लो फिर सिर झुकाकर, जम्हूरियत शर्मिंदा की है
तुमने ही उनसे रहज़नी की बना  रहनुमा जिन्होंने नवाज़ा
पकड़ गिरेबाँ पूछ लो आज ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .

आज फिर एक गांधी अपने घर  से पैदल चल दिया है
फिर अपना जीवन आज उसने नाम वतन के कर दिया है
एक रौशनी की आस में  तूफ़ान से "दीपक "लड़ लिया है
अब सम्भलों अंधेरों तुमने पहन सफेदी बहुत छल क्या है
लेकर मशाल उतरो सड़क पे ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे

@कवि दीपक शर्मा
Logged
kavyadharateam
Guest
«Reply #2 on: August 22, 2011, 05:01:13 PM »
एक हुंकार  ....कृपया इसे अधिकतम लोगों का पहुचाएं
 
 
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे
बात अपनी अब तो कह दो ,कब तलक खामोश रहोगे
बढ के  अपना मांग लो हक़,किस बात का है खौफ तुमको
कब तलक मिमयाते रहोगे ,कब तलक खामोश रहोगे ..
 
ख़ुद  ज़हर पीकर भला क्यों, हम दूध सांपो को पिलायें
क्यों भूखे रखकर  अपने बच्चें, रोटी सियासत  को खिलाएं
दब के हुकुमत से  रहें क्यों ,हम ही जब सरकार बनाएं
सरकार है आवाम की , फिर क्यों वो आवाम को सताएं
ज़ुल्म कब तलक सहते रहोगे, कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
पैदा होने से मरण तक , तुम बांटते रहना बस रिश्वत
पढाई-लिखाई,और कमाई कब तलक समझोगे किस्मत
हक़ की तरह हक़ को मांगो,भीख मत तुम समझो हज़रत
वरना इन दुर्योधन के हाथों बच  ना सकेगी घर की अस्मत  
अब तो तुम गांडीव उठा लो ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
हक़ है तुम्हें ये पूछने का , रंक से बने तुम कैसे  राजा
ग़र है कोई आसान रस्ता ,तो मन्त्र वो सबको बता जा
या मान लो फिर सिर झुकाकर, जम्हूरियत शर्मिंदा की है
तुमने ही उनसे रहज़नी की बना  रहनुमा जिन्होंने नवाज़ा
पकड़ गिरेबाँ पूछ लो आज ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .

आज फिर एक गांधी अपने घर  से पैदल चल दिया है
फिर अपना जीवन आज उसने नाम वतन के कर दिया है
एक रौशनी की आस में  तूफ़ान से "दीपक "लड़ लिया है
अब सम्भलों अंधेरों तुमने पहन सफेदी बहुत छल क्या है
लेकर मशाल उतरो सड़क पे ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे

@कवि दीपक शर्मा
Logged
kavyadharateam
Guest
«Reply #3 on: August 22, 2011, 05:05:45 PM »
एक हुंकार  ....कृपया इसे अधिकतम लोगों का पहुचाएं
 
 
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे
बात अपनी अब तो कह दो ,कब तलक खामोश रहोगे
बढ के  अपना मांग लो हक़,किस बात का है खौफ तुमको
कब तलक मिमयाते रहोगे ,कब तलक खामोश रहोगे ..
 
ख़ुद  ज़हर पीकर भला क्यों, हम दूध सांपो को पिलायें
क्यों भूखे रखकर  अपने बच्चें, रोटी सियासत  को खिलाएं
दब के हुकुमत से  रहें क्यों ,हम ही जब सरकार बनाएं
सरकार है आवाम की , फिर क्यों वो आवाम को सताएं
ज़ुल्म कब तलक सहते रहोगे, कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
पैदा होने से मरण तक , तुम बांटते रहना बस रिश्वत
पढाई-लिखाई,और कमाई कब तलक समझोगे किस्मत
हक़ की तरह हक़ को मांगो,भीख मत तुम समझो हज़रत
वरना इन दुर्योधन के हाथों बच  ना सकेगी घर की अस्मत  
अब तो तुम गांडीव उठा लो ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .
 
हक़ है तुम्हें ये पूछने का , रंक से बने तुम कैसे  राजा
ग़र है कोई आसान रस्ता ,तो मन्त्र वो सबको बता जा
या मान लो फिर सिर झुकाकर, जम्हूरियत शर्मिंदा की है
तुमने ही उनसे रहज़नी की बना  रहनुमा जिन्होंने नवाज़ा
पकड़ गिरेबाँ पूछ लो आज ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे .

आज फिर एक गांधी अपने घर  से पैदल चल दिया है
फिर अपना जीवन आज उसने नाम वतन के कर दिया है
एक रौशनी की आस में  तूफ़ान से "दीपक "लड़ लिया है
अब सम्भलों अंधेरों तुमने पहन सफेदी बहुत छल क्या है
लेकर मशाल उतरो सड़क पे ,कब तलक खामोश रहोगे
हाथ खोलो ,घर से निकलो ,कब तलक खामोश रहोगे

@कवि दीपक शर्मा
Logged
ParwaaZ
Guest
«Reply #4 on: August 22, 2011, 05:09:13 PM »
Deepak jee Aadaab!


 Applause Applause Applause Applause Applause

Bahut achcha aut prernatmak likha hai aapne.. Usual Smile
Desh ke navjawanoN ko aise himmat badhane wale geet se
zarur protsahan mileNga.. Usual Smile

Likhate rahiye... Usual Smile Aate rahiye..
Khush O aabaad rahiye... Usual Smile
Khuda Hafez Usual Smile         

Logged
deepika_divya
Guest
«Reply #5 on: August 22, 2011, 06:01:27 PM »
Topic Merged !

Reason:- Duplicate Post
Note :- Please wait for some time after one post, soem time due to high stress on the server it takes time to appear on the screen.

Nyways :- Bahoot Hi umda aur bahoot Prernajanak Kavita Likhi hai aapne.. Jisse pad kar bahoot protsahan milta hai...

bahoot Bahoot Umda.. Applause Applause Applause Applause Applause
Logged
Pages: [1]
Print
Jump to:  


Get Yoindia Updates in Email.

Enter your email address:

Ask any question to expert on eTI community..
Welcome, Guest. Please login or register.
Did you miss your activation email?
June 15, 2025, 04:44:14 AM

Login with username, password and session length
Recent Replies
by ASIF
[June 06, 2025, 10:19:27 AM]

[June 01, 2025, 08:24:19 AM]

[May 28, 2025, 05:39:43 AM]

[May 26, 2025, 08:22:09 AM]

[May 20, 2025, 05:19:02 AM]

[May 16, 2025, 08:38:38 AM]

[April 27, 2025, 09:31:46 AM]

[April 24, 2025, 01:10:57 AM]

[April 09, 2025, 05:20:40 AM]

[April 09, 2025, 05:18:27 AM]
Yoindia Shayariadab Copyright © MGCyber Group All Rights Reserved
Terms of Use| Privacy Policy Powered by PHP MySQL SMF© Simple Machines LLC
Page created in 0.118 seconds with 20 queries.
[x] Join now community of 8514 Real Poets and poetry admirer