bachpan ki dhoop

by hemlata singh on April 11, 2011, 08:21:38 AM
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hemlata singh
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वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी,
    ममता का आँचल ,
                    वो बारिश  का पानी,
वो बूंदों के झरने में,कस्ती चलानी,
 
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!
  जब माँ गाती थी लोरी,
             और दादी सुनाती थी कहानी,
दादा के कन्धों पे करते थे मस्ती,
            और पापा के सामने होती थी मनमानी,
वो बचपन  की धूप थी कितनी सुहानी,................
न पढ़ने का डर,
              न बढ़ने की परेशानी,
जब आँगन की धूल में,
         होती थी खींचा तानी,  
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी ................
 स्कूल में जाकर ,
               करना मनचाही शैतानी,
  दादा  बनकर करना दबंगई ,
                और खूब अकड़ दिखानी ,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी !.......................
देखते  ही बीता बचपन,
                और आई  है अल्हड जवानी,
अब दिल में है जोश,
                और सांसे हैं तूफानी,
चाहत है कुछ कर जाएँ
                 कुछ न कुछ करने की है दिल में ठानी
पाने को तो बहुत कुछ है यहाँ,
                 पर खो गई वो बचपन की निशानी,
 वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!........................
 रिश्ते भी हैं , नाते भी हैं!
                 पर बदल गई है इनकी रवानी,
अब न तो वो खिलखिलाती हंसी है,
                और ना ही वो बेफिक्री की नादानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
अब न तो वक़्त है किसी क पास,
                और न ही वो प्यार - दुलार ---२
कहानी सुनने का अब शौक नहीं,
               आगे बढ़ रहें हैं, छोड़कर आदत पुरानी,
लगता है जैसे ये बातें,
               हैं हमारे जीवन से अनजानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
ये कैसा आया है समय ----२
              जब रिश्तों ने सिकुड़ने की है ठानी,
सब बस अपने में ही खुश हैं ,
             हो गईं प्यार- दुलार की दास्तानें पुरानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
न तो मुस्कुराने का समय है,
              न ही ज़िन्दगी  जीने का तरीका,
 बस पैसा कमाने की दोड़  में,
              हो रही है दुनिया दीवानी,
इससे तो अच्छी थी,
             बचपन की शाम वो सुहानी,
जब चुराते थे लड्डू,
            और डांट से बचा लेती थी प्यारी नानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
 
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KOYAL46
Guest
«Reply #1 on: April 11, 2011, 09:03:40 AM »
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bahut he mast kavita hai aapki Hemlata-di.... Applause Applause Applause Applause Applause

Saara bachpan aankhon k saamne aa gayaa....
wo masti...wo sharaartein....wo naadaani...
wo khilkhilaati hasseei....wo Gudde-Guddi ka khel
Bajaate they seeti aur daute they banaa kay Rail.....



वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी,
    ममता का आँचल ,
                    वो बारिश  का पानी,
वो बूंदों के झरने में,कस्ती चलानी,
 
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!
  जब माँ गाती थी लोरी,
             और दादी सुनाती थी कहानी,
दादा के कन्धों पे करते थे मस्ती,
            और पापा के सामने होती थी मनमानी,
वो बचपन  की धूप थी कितनी सुहानी,................
न पढ़ने का डर,
              न बढ़ने की परेशानी,
जब आँगन की धूल में,
         होती थी खींचा तानी, 
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी ................
 स्कूल में जाकर ,
               करना मनचाही शैतानी,
  दादा  बनकर करना दबंगई ,
                और खूब अकड़ दिखानी ,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी !.......................
देखते  ही बीता बचपन,
                और आई  है अल्हड जवानी,
अब दिल में है जोश,
                और सांसे हैं तूफानी,
चाहत है कुछ कर जाएँ
                 कुछ न कुछ करने की है दिल में ठानी
पाने को तो बहुत कुछ है यहाँ,
                 पर खो गई वो बचपन की निशानी,
 वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!........................
 रिश्ते भी हैं , नाते भी हैं!
                 पर बदल गई है इनकी रवानी,
अब न तो वो खिलखिलाती हंसी है,
                और ना ही वो बेफिक्री की नादानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
अब न तो वक़्त है किसी क पास,
                और न ही वो प्यार - दुलार ---२
कहानी सुनने का अब शौक नहीं,
               आगे बढ़ रहें हैं, छोड़कर आदत पुरानी,
लगता है जैसे ये बातें,
               हैं हमारे जीवन से अनजानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
ये कैसा आया है समय ----२
              जब रिश्तों ने सिकुड़ने की है ठानी,
सब बस अपने में ही खुश हैं ,
             हो गईं प्यार- दुलार की दास्तानें पुरानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
न तो मुस्कुराने का समय है,
              न ही ज़िन्दगी  जीने का तरीका,
 बस पैसा कमाने की दोड़  में,
              हो रही है दुनिया दीवानी,
इससे तो अच्छी थी,
             बचपन की शाम वो सुहानी,
जब चुराते थे लड्डू,
            और डांट से बचा लेती थी प्यारी नानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
 


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sbechain
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«Reply #2 on: April 11, 2011, 09:07:34 AM »
Reply with quote
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी,
    ममता का आँचल ,
                    वो बारिश  का पानी,
वो बूंदों के झरने में,कस्ती चलानी,
 
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!
  जब माँ गाती थी लोरी,
             और दादी सुनाती थी कहानी,
दादा के कन्धों पे करते थे मस्ती,
            और पापा के सामने होती थी मनमानी,
वो बचपन  की धूप थी कितनी सुहानी,................
न पढ़ने का डर,
              न बढ़ने की परेशानी,
जब आँगन की धूल में,
         होती थी खींचा तानी, 
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी ................
 स्कूल में जाकर ,
               करना मनचाही शैतानी,
  दादा  बनकर करना दबंगई ,
                और खूब अकड़ दिखानी ,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी !.......................
देखते  ही बीता बचपन,
                और आई  है अल्हड जवानी,
अब दिल में है जोश,
                और सांसे हैं तूफानी,
चाहत है कुछ कर जाएँ
                 कुछ न कुछ करने की है दिल में ठानी
पाने को तो बहुत कुछ है यहाँ,
                 पर खो गई वो बचपन की निशानी,
 वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!........................
 रिश्ते भी हैं , नाते भी हैं!
                 पर बदल गई है इनकी रवानी,
अब न तो वो खिलखिलाती हंसी है,
                और ना ही वो बेफिक्री की नादानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
अब न तो वक़्त है किसी क पास,
                और न ही वो प्यार - दुलार ---२
कहानी सुनने का अब शौक नहीं,
               आगे बढ़ रहें हैं, छोड़कर आदत पुरानी,
लगता है जैसे ये बातें,
               हैं हमारे जीवन से अनजानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
ये कैसा आया है समय ----२
              जब रिश्तों ने सिकुड़ने की है ठानी,
सब बस अपने में ही खुश हैं ,
             हो गईं प्यार- दुलार की दास्तानें पुरानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
न तो मुस्कुराने का समय है,
              न ही ज़िन्दगी  जीने का तरीका,
 बस पैसा कमाने की दोड़  में,
              हो रही है दुनिया दीवानी,
इससे तो अच्छी थी,
             बचपन की शाम वो सुहानी,
जब चुराते थे लड्डू,
            और डांट से बचा लेती थी प्यारी नानी,
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
वो बचपन की धूप थी कितनी सुहानी!......................
 



BAHUT BAHUT BEHTEEN BACHPAN KA MOZAHERA KARAYA HAI JI
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