ऐ खुदा

by babasatyajaunpuri on November 02, 2015, 03:17:30 AM
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babasatyajaunpuri
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ऐ खुदा

जाने  दो मुझको दुनिया से लोगों, खुद खुदा लेने आए हुये हैं,
मैं रहूँ न रहूँ इस जहां में, बस्तियाँ हम बसाये हुये हैं,
पूछ लेना कभी पत्तियों  से इन गुलाबों में मेरा लहू है,
देख लेना कभी अंजुमन में फूल कितने खिलाये हुये हैं,
बारिशों औ हवाओं ने साजिश करके अंधेरे को था बुलाया,
आज जा कर उजालों से पूंछों दीप किसने जलाए हुये हैं,
कल परिंदे ने पूंछा था मुझसे,जाती औ धर्म क्या है तुम्हारा,
कत्ल किसने किया है शहर का बिष हवा में मिलाये हुये हैं,
भीड़ कैसी है चौराहे पर आज देख कर मैं जिसे डर गया हूँ,
एक दरिंदे का सम्मान करने लोग बस्ती से आए हुये हैं,
ऐ खुदा आज इंसा ने बांटा ए ज़मीं ए गगन खुद तुझे भी,
घूमते ले के खंजर जहर का खून सबका बहाये हुये हैं,
सोच कैसा बनाया था इनको क्या से क्या आज ए हो गए हैं,
तुन ही कुछ कर ज़मीं पर उतरकर ए तुम्हारे बनाए हुये हैं,
ला दे एकबार वरना कयामत फिर से नक्शा बना इस शहर का,
देख ले दर  पे बंदे तुम्हारे कैसे माथा टिकाये हुये हैं,
हम न हारे हैं तूफ़ा से अब तक कश्तियां हैं समंदर में मेरी ,
मेरे धागे से लोगों ने अब तक हर तिरंगा बनाए हुये हैं,
ऐ खुदा खुद संभल करके आना जब भी आना यहाँ इस गली में,
दहशतगर्दों ने जाने कहाँ पर बम यहाँ पर छुपाए हुये हैं।
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