mohabbat ke safar me----------nazm by Shayar kavi Deepak Sharma

by kavyadharateam on November 19, 2008, 01:44:40 PM
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kavyadharateam
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मोहब्बत के सफर पर चले वाले रही सुनो,
मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है,
महज़ शादी ही, मोहब्बत का साहिल नहीं,
मंजिल तो इससे भी दूर, बहुत दूर जाती है ।

जिन निगाहों में मुकाम- इश्क शादी है
उन निगाहों में फ़कत हवस बदन की है,
ऐसे ही लोग मोहब्बत को दाग़ करते हैं
क्योंकि इनको तलाश एक गुदाज़ तन की है ।

जिस मोहब्बत से हजारों आँखें झुक जायें ,
उस मोहब्बत के सादिक होने में शक है
जिस मोहब्बत से कोई परिवार उजड़े
तो प्यार नहीं दोस्त लपलपाती वर्क है ।

मेरे लफ्जों में, मोहब्बत वो चिराग है
जिसकी किरणों से ज़माना रोशन होता है
जिसकी लौ दुनिया को राहत देती है
न की जिससे दुखी घर, नशेमन होता है ।

मेरे दोस्त ! जिस मोहब्बत से पशेमान होना पड़े
मैं उसे हरगिज़ मोहब्बत कह नहीं सकता
नज़र जिसकी वजह से मिल न सके ज़माने से
मैं ऐसी मोहब्बत को सादिक कह नहीं सकता ।

मैं भी मोहब्बत के खिलाफ नहीं हूँ
मैं भी मोहब्बत को खुदा मानता हूँ
फर्क इतना है की मैं इसे मर्ज़ नहीं
ज़िन्दगी सँवारने की दवा मानता हूँ ।

साफ हरफों में मोहब्बत उस आईने का नाम है
जो हकीकत जीवन की हँस कर कबूल करवाता है
आदमी जिसका तस्सव्वुर कर भी नहीं सकता
मोहब्बत के फेर में वो कर गुज़र जाता है ।
(ऊरोक्त नज़्म काव्य संकलन falakdipti से ली गई है )
Kavi Deepak Sharma
All rights reserved@Kavi Deepak Sharma
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kaushikbhawna008
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«Reply #1 on: November 20, 2008, 05:11:14 AM »
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wonderful  deepak ji  Applause
nice thought
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khujli
Guest
«Reply #2 on: August 23, 2011, 08:53:32 AM »
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मोहब्बत के सफर पर चले वाले रही सुनो,
मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है,
महज़ शादी ही, मोहब्बत का साहिल नहीं,
मंजिल तो इससे भी दूर, बहुत दूर जाती है ।

जिन निगाहों में मुकाम- इश्क शादी है
उन निगाहों में फ़कत हवस बदन की है,
ऐसे ही लोग मोहब्बत को दाग़ करते हैं
क्योंकि इनको तलाश एक गुदाज़ तन की है ।

जिस मोहब्बत से हजारों आँखें झुक जायें ,
उस मोहब्बत के सादिक होने में शक है
जिस मोहब्बत से कोई परिवार उजड़े
तो प्यार नहीं दोस्त लपलपाती वर्क है ।

मेरे लफ्जों में, मोहब्बत वो चिराग है
जिसकी किरणों से ज़माना रोशन होता है
जिसकी लौ दुनिया को राहत देती है
न की जिससे दुखी घर, नशेमन होता है ।

मेरे दोस्त ! जिस मोहब्बत से पशेमान होना पड़े
मैं उसे हरगिज़ मोहब्बत कह नहीं सकता
नज़र जिसकी वजह से मिल न सके ज़माने से
मैं ऐसी मोहब्बत को सादिक कह नहीं सकता ।

मैं भी मोहब्बत के खिलाफ नहीं हूँ
मैं भी मोहब्बत को खुदा मानता हूँ
फर्क इतना है की मैं इसे मर्ज़ नहीं
ज़िन्दगी सँवारने की दवा मानता हूँ ।

साफ हरफों में मोहब्बत उस आईने का नाम है
जो हकीकत जीवन की हँस कर कबूल करवाता है
आदमी जिसका तस्सव्वुर कर भी नहीं सकता
मोहब्बत के फेर में वो कर गुज़र जाता है ।
(ऊरोक्त नज़्म काव्य संकलन falakdipti से ली गई है )
Kavi Deepak Sharma
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