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rsd4u
Guest
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कोई नहीं है हमसफ़र मेरा, बिलकुल दुनियां में अकेला हूँ मैं। मैं खुद ही अपना दोस्त हूँ, खुद अपना ही दुश्मन हूँ मैं।
प्यार जताता हूँ खुद अपने आपसे, खुद अपने आपको ही धोखा देता हूँ मैं। पहनाता हूँ फूलों की माला अपने आपको, राहों में अपनी ही कांटे बिछाता हूँ मैं।
ज़िन्दा होकर भी मुर्दा हूँ ऐ दोस्त, न चाहते हुए भी जी रहा हूँ मैं। सभी को क़त्ल करता जा रहा हूँ, साथ ही अपना भी क़त्ल करता हूँ मैं।
कोई न बातें करता मुझसे, खुद ही अपने आपसे बातें करता हूँ मैं। कोई भी नहीं देता है साथ मेरा, खुद ही अपना साथ देता हूँ मैं।
परायों के लिए तो पराया ही हूँ, लेकिन अपनों के लिए भी ग़ैर हूँ मैं। मैखाने से नहीं करता हूँ नशा, अपने आपको ही नशेमंद बनाता हूँ मैं।
ज़िन्दगी मेरी मेहफिलों से भरी है, फिर भी क्यूँ वीरान- ओ - तनहा हूँ मैं। देखने को तो मैं बहोत कुछ हूँ मगर, फिर भी लगता है की कुछ भी नहीं हूँ मैं।
अपनी आँखों से देख रहा हूँ बर्बादी दुनियाँ की, ये समझकर चुप बैठा हूँ की अंधा हूँ मैं। लेकिन जिस दिन खोल दूंगा आँखें अपनी, दिखा दूंगा ज़माने को क्या चीज़ हूँ मैं।
जिसका वार कभी खाली जाता ही नहीं, इस किस्म का खतरनाक तीर हूँ मैं। इश्क-ओ-मोहब्बत के इस नए दौर में, खुद ही रांझा हूँ, खुद ही हीर हूँ मैं।
यूँ तो जवान - ओ - तंदुरुस्त हूँ, फिर भी बुढापे को मेहसूस कर रहा हूँ मैं। ज़िन्दगी में जीने के बहोत दिन है मेरे, फिर भी मौत को बार बार देख रहा हूँ मैं।
दुनियाँ में सभी के ख़त्म हो जाने पर, कभी ख़त्म नहीं हो सकता ऐसा कफ़न हूँ मैं। लिखते लिखते मेरा कोई अंत ही नहीं, कभी न ख़त्म होनेवाला वो शेर हूँ मैं....!!
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