चल फिर से
अजनबी बन जाते हैं,
तू तेरे रस्ते
और
मैं मेरे रस्ते हो जाते हैं..
पर क्या होगा ?
उस प्रीत पराई का ,
जिसमें संग जीने की
कसमें थी , वादें थे
फिर क्यूँ वक्त आया
जुदाई का..
याद करों वो पल
जब हम पहली बार मिले,
थे अजनबी ,
पर पास आयें,
एक दुसरे को समझकर
करीब आयें,
दोस्त बनकर,
प्यार की दरिया में कूद पड़े..
वो पल कितने हसीन थे,
जब हम एक दुसरे को
समझा करते थे,
हर दुःख - दर्द में
एक दुसरे को याद करते थे..
आज अश्क बहते हैं
एक दुसरे पे तीखे
इल्जाम लगाते हैं..
एक दुसरें की भावनाओं
को आहत करते हैं..
क्या यही थी मोहब्बत,
क्या यही था स्नेह,
जो कभी दुआ में
साथ मांगते थे
आज जुदाई मांग रहे हैं..
क्यूँ वक्त आया
वापस
तन्हाई का..
याद आती हैं मुझे,
तुम्हारी वो
मीठी - मीठी बातें,
शरारती पन,
मासूम सी आँखे,
गुलाबी होंठ,
वो दिलकश अंदाज,
हर बात पर
एक नया सवाल,
पायलों की छन छन
चूड़ियों की खन खन
माथे की बिंदिया,
वो अलहडपन..
कैसे भुलाऊंगा
तेरे संग बीते पल,
वो यादें, वो वादें
कैसे लिख पाउँगा में..
दिल में
अजीब सी हलचल हैं,
लौट आ
मत छोड़ के जा,
कुछ नहीं रखा जुदाई में,
नहीं हिसाब लूँगा
तुमसे अब
अश्को का..
चल फिर से
अजनबी बन जाते हैं,
तू तेरे रस्ते
और
मैं मेरे रस्ते हो जाते हैं..
बन कर
फिर से अजनबी
मुलाकात करते हैं,
दोस्ती से
मोहब्बत की फिर
शुरुवात करते हैं..
" ऋषि " सुन,
क्या रखा हैं,
जुदाई, तन्हाई में..
बस अश्क बहेंगे,
बिछडन का दर्द
हर किसी से कहेंगे..
चल बहुत हुई
रुसवाई
लौट आ अब,
सुना सूना हैं
पल - पल तेरे
हरजाई का..
२७ जून २०१४